manikarnika ghat मणिकर्णिका घाट की रोचक तथ्य । मणिकर्णिका घाट की इतिहास 1

 मणिकर्णिका घाट की रोचक तथ्य । मणिकर्णिका घाट की इतिहास manikarnika ghat 

manikarnika ghat
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manikarnika ghat मणिकर्णिका घाट विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट भारत के वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित है।  यह घाट बहुत ही विश्व प्रसिद्ध है, कहा जाता है कि एक समय भगवान शिव और माता पार्वती ने भ्रमण करते हुए यहां पर पहुंचे हुए थे। तब माता पार्वती जी काकर्णफूल  एक कुंड में गिर गया था जिसे ढूंढने के लिए भगवान भोलेनाथ ने वहां के कुछ ब्राह्मणों को आदेश किया गया था। लालच में आकर  ब्राह्मण ने कर्णफूल  को अपने पास रखकर झूठ बोला  दिया कि मेरे को नहीं मिला। तब भगवान भोलेनाथ ने उन्हें श्राप दे दिया  इस कारण से इसका नाम मणिकर्णिका पड़ गया।

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manikarnika ghat दूसरी मान्यता के अनुसार माता सती भगवान शिव की उपहास/ बदनामी उनके पिता दक्ष द्वारा भरे सभा में किया गया जिसे माता साथी ने सहन नहीं कर पाया पता द्वार पति का अपमान और यज्ञ कुंड में कूद गई। जिसे माता सती की पिंड  अलग जगह बिखर कर गिर गया।

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कुछ बचे अवशेष को भगवान शंकर जी द्वारा माता सती जी के पार्थिव शरीर का जब दाह संस्कार करने लाया गया जिस कारण से इसे महा शमशान घाट manikarnika ghat भी कहा जाता है। और विश्व का महाश्मसान के नाम से जाना जाता है। आज भी यहां दाह संस्कार दिन-रात 24 घंटे होते रहती है आज तक कभी भी यहां आग बुझी नहीं।

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manikarnika ghat मणिकर्णिका घाट से जुड़ी अभी भी दो कथाएं प्रचलित है एक तो है। भगवान विष्णु जी के अनुसार जब भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां पर एक कुंड खोदा था। जिसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका श्वेत भर गया इसे देख जब भगवान शिव वहां प्रसन्न होकर विष्णु जी के पास प्रकट हुए। तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई।

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manikarnika ghat घाट की दूसरी कथा के मान्यता अनुसार भगवान शिव ने अपने भक्तों से छुट्टी नहीं मिल पाती थी। तब देवी पार्वती इससे बहुत ज्यादा परेशान और नाराज हुआ करती थी। इसलिए माता पार्वती ने शिव जी को अपने पास रहने हेतु, अपने कान की मणिकर्णिका को वही छुपा दी। और भगवान शिव को उसे ढूंढने को कहा गया। जब भगवान शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाए और आज तक जिसकी भी अनत्येष्टि उसी  घाट पर की जाती है।

वह उनसे पूछते हैं कि क्या उनकी सती का मणिकर्णिका किसी ने देखा है। ऐसी है इस घाट की विशेषता यह है कि यहां लगातार हिंदू अनत्येष्टि होती रहती है।  वह घाट पर चीता की अग्नि लगातार जलता ही रहती है, कभी भी आग बुझी नहीं है। इसी कारण से माहाशमशान के नाम से भी जाना जाता है।  यहां कहा जाता है कि  एक चिता कि आग जैसे ही बुझने की होती है.  दूसरे चिता में आग लगा दी जाती है।

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वैसे तो कोई शमशान घाट जाना नहीं चाहता लेकिन मणिकर्णिका घाट  manikarnika ghat एक ऐसा घाट है पूरे विश्व  में यहां देश-विदेश से लोग इस घाट का दर्शन करने भी आते हैं। क्योंकि इस घाट पर एक ऐसा एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य ही मृत्यु ही है। वाराणसी में 84 घाटों में से सबसे चर्चित घाट में से यह एक मणिकर्णिका घाट है। मणिकर्णिका घाट के समीप भगवान भोलेनाथ का एक तारकेश्वर महादेव मंदिर है जो 90 डिग्री झुका हुआ है।

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नजदीक में काशी जी की आदिशक्ति पीठ विशाल जी का मंदिर विराजमान है मान्यता है कि यहां पर मृत्यु प्राप्त करने वाले प्रत्येक शरीर में भगवान भोलेनाथ स्वयं आकर उनके कानों में तारक मंत्र ( राम नाम )कहते हैं.  एवं उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।

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मणिकर्णिका क्यों आते लोग देश विदेश manikarnika ghat

यह महाशमशान मणिकर्णिका घाट  manikarnika ghat को देखने के लिए लोग  देश- विदेश से आते हैं। क्योंकि इंसान एक न एक दिन तो मरना  ही है। जिसका जीता जागता उदाहरण है काशी का मणिकर्णिका घाट। कि अपने पास धन दौलत महंगी कर बड़ी-बड़ी इमारतें , बैंक बैलेंस सब चीज यही रह जाती है। सिर्फ चार कंधों पर इंसान को शमशान ले लिया जाता है.  इसलिए सभी लोग यहां आकर सबका घमंड इसे देखकर एकदम चूर-चूर हो जाता है।  यहां आकर लोग मौत को नजदीकी से देखते और जानना चाहते हैं।

मणिकर्णिका घाट manikarnika ghat में महासमसान से और भी ख्याति और प्रसिद्ध है। यहाँ प्रसिद्ध अघोर काली मंदिर है। अघोर साधना यहां के अघोरी मणिकर्णिका घाट में मुर्दे से तंत्र क्रिया करते है। यहाँ अघोरी भारत के हर कोने से आते जहा तक की विदेशो से आकर लोग अघोर सधना रहते हैं। और तांत्रिक क्रियाकलाप करते हैं.  यहां पर अमावस्या या पूर्णिमा के रात में बहुत सारे अघोरी होते हैं जो अपने तांत्रिक क्रियाकलाप को पूर्ण करते हैं। कहा जाता है की अघोरी मरे हुए इंसान की मांस को भी प्रसाद के रूप में कहते है।

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