वर्चुअल ऑटिज्म :- सर्वे के अनुसार देश की 47 करोड़ आबादी सोशल मीडिया पर सक्रिय है। यानी देश में हर तीन में से एक व्यक्ति सोशल मीडिया पर वक्त बिता रहा है और सबसे ज्यादा यूजर बच्चे, किशोर और युवा हैं। अब यही आदत लत का रूप ले रही है और बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं। virtual autism
आज के समय में टेक्नोलॉजी सभी की जिंदगी में बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है, लेकिन यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रही है। बच्चों का मन गीली मिट्टी की भांति होता है, जिसे हम किसी कुंभकार की भांति मनचाहा आकार दे सकते हैं।
वर्चुअल ऑटिज्म क्या है?
वर्चुअल ऑटिज्म यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चों को स्क्रीन जैसे मोबाइल फोन लैपटॉप आदि के माध्यम से सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय बिताने की वजह से ऑटिज्म में जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं, यह स्थिति ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से बिल्कुल अलग होता हैं। what is a virtual autism
मनोविज्ञानी जॉन. बी. वाटसन ने क्या कहा वर्चुअल ऑटिज्म के बारे ?
मनोविज्ञानी जॉन. बी. वाटसन ने यूं ही नहीं कहा था कि मुझे नवजात शिशु दे दो। मैं उसे डॉक्टर, वकील, चोर या जो चाहूं बना सकता हूं। इसलिए बच्चों के बचपन को सुरक्षित किए जाने की जरूरत है।
इस संदर्भ में हाल ही में आस्ट्रेलिया की संसद में दुनिया का अपने किस्म का पहला, अनोखा विधेयक पेश किया गया है। इसमें 16 साल से कम उम्र के बच्चों पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने का प्रावधान है। विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक अगर कंपनियां (जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम) बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने में कामयाब नहीं हो पाती हैं, तो उन पर 3.3 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगाया जा सकता है।
भारत को भी इस संदर्भ में कदम उठाने चाहिए, क्योंकि भारत आज विश्व का सबसे युवा देश है |
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